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दिल्ली हाईकोर्ट ने दी अतिक्रमण हटाने की मंजूरी, कहा – सार्वजनिक भूमि पर कब्जे का अधिकार नहीं Amzad KhanMay 29, 2025Last Updated: May 29, 2025 1 minute read Delhi High Court दिल्ली हाईकोर्ट Delhi High Court Encroachment : दिल्ली हाई कोर्ट ने सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण मामले को लेकर कहा कि नीति के तहत अतिक्रमणकारी पुनर्वास होने तक उक्त भूमि पर बरकरार रहने का दावा नहीं कर सकते है. पुनर्वास का अधिकार संवैधानिक अधिकार नहीं होता है, जबकि यह मौजूदा नीति से उत्पन्न अधिकार है. वहीं अतिक्रमण हटाना और लोगों का पुनर्वास करना दोनों अलग-अलग प्रक्रिया हैं. पुनर्वास प्रक्रिया के लंबित होने के आधार पर सार्वजनिक परियोजनाओं को बाधित नहीं किया जा सकता है. जस्टिस धर्मेश शर्मा ने दी जानकारी हालांकि जस्टिस धर्मेश शर्मा ने गोविंदपुरी इलाके के भूमिहीन कैंप के अतिक्रमणकरियों के पुनर्वास तक अतिक्रमण को तोड़ने पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि पुनर्वास के लिए पात्रता का निर्धारण सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमणकारियों को हटाने से अलग प्रक्रिया है. कई याचिकाओं को खारिज करते हुए उन्होंने याचिकाकर्ताओं ने डीयूएसआईबी से प्रभावित निवासियों का सर्वेक्षण कराने एवं दिल्ली. स्लम और जे जे पुनर्वास और पुनर्वास नीति 2015 के. मुताबिक उनका पुनर्वास करने का निर्देश देने की मांग की थी. यह भी पढ़ें : रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बोले – PoK के लोग हमारे अपने हैं, हमारे परिवार का हिस्सा हैं, हम ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के लिए प्रतिबद्ध डीडीए का अतिक्रमण हटाने का कदम नीति के तहत जिसके बाद कोर्ट ने कहा कि डीडीए का अतिक्रमण हटाने का कदम नीति के तहत है. मौजूदा नीति के तहत याचिकाकर्ता कानून के तहत पुनर्वास का दावा कर सकते हैं, लेकिन जमीन पर अनवरत कब्जा करने का अधिकार उन्हें नहीं है. खासकर तब जब सार्वजनिक हित में बड़े काम करने के लिए अतिक्रमण हटाना जरूरी हो. सार्वजनिक काम के देरी होने की वजह से सरकार पर बोझ भी बढ़ता है.

  दिल्ली हाईकोर्ट ने दी अतिक्रमण हटाने की मंजूरी, कहा – सार्वजनिक भूमि पर कब्जे का अधिकार नहीं Amzad Khan May 29, 2025 Last Updated: May 29,...

 

दिल्ली हाईकोर्ट ने दी अतिक्रमण हटाने की मंजूरी, कहा – सार्वजनिक भूमि पर कब्जे का अधिकार नहीं

Delhi High Court Encroachment : दिल्ली हाई कोर्ट ने सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण मामले को लेकर कहा कि नीति के तहत अतिक्रमणकारी पुनर्वास होने तक उक्त भूमि पर बरकरार रहने का दावा नहीं कर सकते है. पुनर्वास का अधिकार संवैधानिक अधिकार नहीं होता है, जबकि यह मौजूदा नीति से उत्पन्न अधिकार है. वहीं अतिक्रमण हटाना और लोगों का पुनर्वास करना दोनों अलग-अलग प्रक्रिया हैं. पुनर्वास प्रक्रिया के लंबित होने के आधार पर सार्वजनिक परियोजनाओं को बाधित नहीं किया जा सकता है.

जस्टिस धर्मेश शर्मा ने दी जानकारी

हालांकि जस्टिस धर्मेश शर्मा ने गोविंदपुरी इलाके के भूमिहीन कैंप के अतिक्रमणकरियों के पुनर्वास तक अतिक्रमण को तोड़ने पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि पुनर्वास के लिए पात्रता का निर्धारण सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमणकारियों को हटाने से अलग प्रक्रिया है. कई याचिकाओं को खारिज करते हुए उन्होंने याचिकाकर्ताओं ने डीयूएसआईबी से प्रभावित निवासियों का सर्वेक्षण कराने एवं दिल्ली. स्लम और जे जे पुनर्वास और पुनर्वास नीति 2015 के. मुताबिक उनका पुनर्वास करने का निर्देश देने की मांग की थी.

यह भी पढ़ें : रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बोले – PoK के लोग हमारे अपने हैं, हमारे परिवार का हिस्सा हैं, हम ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के लिए प्रतिबद्ध

डीडीए का अतिक्रमण हटाने का कदम नीति के तहत

जिसके बाद कोर्ट ने कहा कि डीडीए का अतिक्रमण हटाने का कदम नीति के तहत है. मौजूदा नीति के तहत याचिकाकर्ता कानून के तहत पुनर्वास का दावा कर सकते हैं, लेकिन जमीन पर अनवरत कब्जा करने का अधिकार उन्हें नहीं है. खासकर तब जब सार्वजनिक हित में बड़े काम करने के लिए अतिक्रमण हटाना जरूरी हो. सार्वजनिक काम के देरी होने की वजह से सरकार पर बोझ भी बढ़ता है.

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